Wednesday, 23 April 2014

कौन था फ्रांसिस जेवियर ?

कौन था फ्रांसिस जेवियर ?


   "जब सभी का धर्म-परिवर्तन हो जाता है तब मैं उन्हें यह आदेश देता हूँ कि झूठे भगवान्
      के मंदिर गिरा दिए जाएँ और मूर्तियाँ तोड़ दी जाएँ.जो कल तक उनकी पूजा करते थे उन्हीं
      लोगों द्वारा मंदिर गिराए जाने तथा मूर्तियों को चकनाचूर किये जाने के दृश्य को देखकर मुझे
      जो प्रसन्नता होती है उसको शब्दों में बयान करना मैं नहीं जनता".
 
क्या आप जानते हैं उपर्युक्त शब्द किसके हैं?महमूद गजनवी के?या औरंगजेब के? या किसी अन्य मुग़ल  बादशाह के?नहीं,ये'उदगार'
हैं एक विश्व-प्रसिद्ध"संत"के जिसका नाम सुनकर करोड़ों लोगों के मस्तक श्रद्धा और सम्मान से नत हो जाते हैं तथा जिसके नाम पर
सैकड़ों शिक्षण संस्थान भारत में चलाये जा रहे हैं.

जी हाँ,उस महान "संत"का नाम है फ्रांसिस ज़ेवियर.

कौन था फ्रांसिस ज़ेवियर और क्या-क्या कारनामे किये उसने इस पावन धरती पर, यह जानना आवश्यक है.

फ्रांसिस ज़ेवियर का जन्म १५०५ ई में नवारे(पुर्तगाल) में हुआ था.प्रारंभिक शिक्षा अपने देश मे पाने के बाद वह उच्च शिक्षा
के लिए पेरिस गया जहां उसने अपने पांच अन्य मित्रों के साथ मिलकर "जेसुइट"(jesuit) समाज(Society of Jesus)
की स्थापना की जो आगे चलकर कैथोलिक मत प्रचार की प्रमुख एजेंसी बनने में सफल हुई.
पुर्तगाल के सम्राट जोमामो (त्रितीय) की प्रेरणा तथा पोप की सहमति से जेवियर ६ मई,१५४२ को लिस्बन से गोवा आ गया.यहाँ आने के
बाद
 उसने संत पॉल महाविद्यालय कि स्थापना की जिसका उद्देश्य स्थानीय लोगों को 'मत-प्रचार'के लिए मिशनरी शिक्षा देना था.

अक्टूबर,१५४२ में ज़ेवियर कोरमंडल के मोती-मछली तट पहुंचा जहाँ पुर्तगालियों ने १५१८ से १५३० के बीच अपना आधिपत्य स्थापित कर
लिया था.इस तट पर 'परवा'जाति के मछुआरे रहा करते थे जिन्होंने दबाब में आकर इसाई बनना तो स्वीकार कर लिया था किन्तु व्यवहार
 में वे हिन्दू ही रहे थे तथा मूर्तियाँ बनाते थे व् उनकी पूजा भी किया करते थे.सन १५४२-१५४५ के दौरान ज़ेवियर ने उन पर ऐसे-ऐसे अत्याचार
 किये जिसका उदाहरण इतिहास में विरले ही मिलता है.ईसाई इतिहासकारों ने History of Christianity in India
(United Theological Seminary,Bangalore द्वारा प्रकाशित)में ज़ेवियर के अत्याचारों की कहानी का खुलासा किया है.उनके अनुसार ज़ेवियर
को जब भी किसी व्यक्ति के द्वारा मूर्तियाँ बनाने या मूर्ति-पूजन की सूचना मिलती थी तो वह स्वयं वहां जाकर अपनी आँखों के सामने उन्हें तुडवा देता
 था.यदि उसके बाद भी कोई ईसाई मूर्तियाँ बनाने का कार्य जारी रखता था तो ज़ेवियर उस व्यक्ति को ग्राम-प्रधान द्वारा प्रताड़ित करवाता था या उसे गाँव
छोड़कर जाने पर वाध्य कर देता था.हिस्ट्री के ही अनुसार जब एक दिन ज़ेवियर को किसी घर में मूर्ति-पूजा कि सूचना मिली तो उसके आदेश से उस झोपडी
जला दिया गया ताकि दूसरों को सबक मिल सके.
करोमंडल तट पर किये गए अपने अत्याचार की कहानी ज़ेवियर ने मालाबार में भी दुहराई.वहां भी जब सारे गाँव के लोगों का बप्तिस्मा हो जाता था तब ज़ेवियर
 के आदेश से गाँव के मंदिरों  को गिरा दिया जाता था तथा उनमे स्थापित मूर्तियों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाते थे.अपनी'बहादुरी'की गाथा को उसने 'सोसाइटी
ऑफ़ जीसस'को लिखे गए पत्र (दिनांक ८ फरवरी,१५४५) में लिपिबद्ध किया था जिसकी कुछ पंक्तियाँ ऊपर उधृत की गयीं हैं.
 ज़ेवियर के मत-परिवर्तन अभियान में रोम द्वारा नियुक्त 'विकार जनरल ऑफ़ इंडिया मिन्गुएल वाज़ भी शामिल था.ज़ेवियर की प्रेरणा से उसने नवम्बर १९४५ में
पुर्तगाल के राजा को एक पत्र भेजा और ईसाई मत-प्रचार व् मत-परिवर्तन को आसान व् सफल बनाने के लिए ४१ सूत्री कार्यक्रम की अनुशंसा की जिसके तहत मूर्तियाँ
बनाना (चाहे वे मिटटी की हों या लकड़ी की या पत्थर की या ताम्बे कि या किसी अन्य धातू की)और मूर्ति-पूजा गैर-कानूनी करार कर दिया गया तथा उसकी
अवमानना करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान कर दिया गया.इस कार्यक्रम के तहत हजारों मंदिरें गिराई गयीं तथा हज़ारों लोगों को कठोरतम यातनाएं दी
गयीं.
History of Christianity के खंड १ के अनुसार साल्सेट में २३० हिन्दू मंदिर,वार्देज में ३०० मंदिर तथा बासीन,बान्द्रा,थाणे,मुंबई आदि जगहों में
अनगिनत मन्दिर ध्वस्त किये.मिशनरी रिकॉर्ड के अनुसार ही बहुत से बड़े-बड़े मंदिरों को चर्च में परिवर्तित कर दिया गया.यहाँ तक कि एलीफैनटा की गुफा में अवस्थित
 एक मंदिर को ईसाई चैपल में बदल दिया गया.सेविओंन तथा नेवेन टापुओं पर स्थित अनेक मंदिर भी गिराए गए.यहाँ तक कि घरों के अन्दर रखी निजी मूर्तियाँ भी गैर क़ानूनी थीं
तथा उसके लिए भी कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान था.जो हिन्दू पुर्तगाली सीमा के अन्दर तीर्थ-यात्रा पर जाते थे या किसी अन्य प्रदेश में मंदिर-निर्माण हेतु दान आदि दिया करते थे
उन्हें भी प्रताड़ित किया जाता था.

जैसी कि कैथोलिक परंपरा रही है ज़ेवियर ने मत-परिवर्तन के लिए जबरदस्ती का सहारा लेने में कोई कोर कास-कसर नहीं छोडी.अपने एक जेसुइट मित्र फादर सीनाओ रोड्रिग्स को
लिखे गए एक पत्र(दिनांक २० जनवरी १५४८) में उसने विचार व्यक्त किया कि भारत में ईसाईयत के प्रचार-प्रसार के लिए पुर्तगाली राजा के लिए इस प्रकार का हुक्नामा जारी
करना आवश्यक था जिसके तहत इसके अधिकारी ईसाइयों की संख्या में उत्तरोत्तर बढ़ोत्तरी के लिए प्रयास करने को वाध्य हों तथा अवमानना कि स्थिति में कठोर सजा के भागी बने.पुर्तगाल
के राजा को लिखे गए एक अन्य पत्र में उसने राजा को स्पष्ट शब्दों में कहा था कि जब तक वायसराय और गवर्नरों को अपने पद व् संपत्ति से हाथ धोने का डर नहीं होगा तब तक अधिक से
अधिक संख्या में'पापियों'के मत-परिवर्तन के लिए ये प्रयत्न नहीं करने वाले.ब्राह्मणों में हिदुओं की अगाध आस्था भी ज़ेवियर की राह में एक रोड़ा थी अतः उसने ब्राह्मणों पर अनेकानेक
अत्याचार करवाए तथा अनेकों को मौत के घाट उतरवा दिए.

भारत आने के बाद से ही ज़ेवियर ने देखा था की मत-परिवर्तन के बाद भी ये भारतीय जिसमे हिन्दू,यहूदी,मुसलमान आदि शामिल थे अपने पूर्व के धर्म को ही मानते थेतथा तथा
चोरी-छिपे अपने धर्म के अनुसार ही पूजा या इबादत किया करते थे.ज़ेवियर जानता था कि चर्च के पास ऐसी स्थिति से निपटने के लिए इनक़वीजीशन(Inquisitioन)जैसा हथियार
था जिसके तहत ऐसे ईसाइयों को मौत तक की सजा दी जा सकती थी.अतः उसने पुर्तगाली राजा को इसके प्रयोग की भी सलाह दी.

अपने भारत प्रवास के दौरान ज़ेवियर जापान भी गया तथा वहां भी करीब २२ महीनों तक ईसाईयत का प्रचार करता रहा किन्तु जापानियों की  भगवान् बुद्ध और बौद्ध धर्म मे अगाध आस्था के कारण
उसकी वहां दाल नहीं गली और वह वापस भारत आ गया.

ज़ेवियर ने चीन के बारे में भी बहुत कुछ सुन रखा था.मत-प्रचार के लिए वह चीन की यात्रा पर निकल पडा किन्तु क्वान्तुंग तट के पास एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई(२ दिसम्बर १५५२).
फरवरी १५५३ में पुर्तगालियों ने उसके शव को कब्र से निकाल कर १४ मई १५५४ को गोवा लाया और अभी भी उसका शव संत पॉल चर्च में "विश्वासियों"के दर्शनार्थ रखा हुआ है.मृत्यु  के १०८ वर्ष
बाद रोम ने उसे उसकी 'सेवाओं' के लिए 'संत' कि उपाधी प्रदान की.

संभवतः यह एक विडम्बना नहीं वरन चर्च का दर्शन ही है जिसके अनुसार संत या महात्मा वाही होता है जो संसार में ईसाईयत का  जाल बिछाने में सफल हो तथा ईसाई साम्राज्यवाद को अधिक से अधिक
विस्तृत कर सके,तरीका चाहे कोई भी अपनाना पड़े.लुइ वुईलौट ने चर्च के दर्शन को निम्न शब्दों मे संक्षिप्त किया है:
       "जहाँ हम कैथोलिक अल्पसंख्यक होते हैं वहां हम 'आपके'सिद्धांत के नाम पर
             स्वतंत्रता की मांग करते हैं,जहाँ हम बहुसंख्यक हैं वहां हम 'अपने' सिद्धांत
             के  नाम पर (दूसरों कि) स्वतंत्रता को ठुकराते हैं".    
         

Wednesday, 31 July 2013

Chemistry of Chamchagiri

What is sycophancy, popularly known as Chamchagiri in our country? Is it an art or has it got a scientific basis?Is it an artful science or a scientific art?Perhaps both.

In order to be a Chamcha, one has to have the loyalty of a dog(the stray one!),craftiness of a fox,patience and tolerance of an ass and a chameleon like ability to change colours.The four animal ingredients combined with a good dose of human shamelessness complete the formula of Chamchagiri.You may call it Chamchamycin.The level of ingredients vary with the need of the Chamcha.It also depends on the class of the CHAMCHABAZ.The Chamcha has to consider the like and dislike of his master!

There are various grades of chamchas.And they are found in almost every sphere of life be it politics or administration or literature or business or academics or medicine or in any other field.You name it they are there.In the present scenario, chamchas abound in politics.Politicians especially those in power have in their 'treasure' a posse of chamchas  from different fields be it from politics itself or from literature or from business or from bureaucracy or education or medicine or filmdom or religion or from among the new breed of mediapersons(who have of late assumed special position in the field of Chamchagiri) Being a chamcha has now assumed the proportion of being a status symbol!

Where political chamchas try to please their masters(the Chamchabaaz)through speeches,statements, rallies, processions etc,the literary chamchas take recourse to their pen to eulogise their idols.The present day bureaucrat is no longer able to perform  his/her duty without taking a regular dose of Chamchamycin.Medical chamchas run to their masters with all their equipments even if the politician has a sneeze! Religious chamchas-the prriests from different religions become ardent chamchas by becoming the sole medium to connect  their strings direct to the almighty!

The 'ladies and gentlemen' of the fourth estate are on top in the field of Chamchagiri.Pen and now-a -days television have become mightier than sword!None from the other fields can ever dream of beating them as far as Chamchagiri is concerned!

Chamchas happen to be quite an intelligent lot.They have the ability to recognize the shining sun (and son!) of the day!They worship only the rising ones.They never commit the blunder of becoming तिनके का सहारा of the setting sun(or son!).The moment the particular sun sets, the chamchas disappear from the scene.They are guided by their self interests rather than the interest of their erstwhile masters.Their lacrimal ducts are devoid of tears.

Heroes and sycophants though are complimentary to each other.Both are usually devoid of talent and they are ever so conscious of that. Their togetherness is a perfect example of symbiosis!
A Chamcha is quite content to be near his hero of the day.He never aspires to be a hero himself.For,if he indulged in such misadventure, he would cease to be what he is -A Chamcha!

One of the most admirable qualities of a perfect chamcha is that he doesn't believe in sentimentalism.His head forever rules his heart.He may do great things for his hero but he never gets emotionally involved with him.The moment his hero falls from grace,the Chamcha like a true chameleon changes colour and runs to the up and coming hero or heroes of the day!

Heroes may come and may go but chamchas go on forever!

PS: We all know, Late Mrs Indira Gandhi had a big force of chamchas so long as she ruled.One Indira chamcha once lamented:
      "Who says we are Mrs Gandhi's YES MEN! The truth is that whenever she says NO, we all say NO..."The same applies to the present one too!

Monday, 29 July 2013

काश! हिन्दू भी सांप्रदायिक होते!

धर्म का अर्थ है-धारणीय गुणों पर आधारित जीवन प्रणाली.मनु ने धर्म के १० लक्षण बतलाये हैं- संतोष,क्षमा,संयम,सत्यनिष्ठा, बुद्धिमता, ज्ञानार्जन,मानसिक अनुशासन,इन्द्रियों पर नियंत्रण,चोरी न करना तथा विचार, कर्म और संभाषण की शुद्धता.यही सनातन धर्म है,यही हिन्दू धर्म है.

खेद है की कतिपय ऐतिहासिक कारणों से हिन्दू धर्म का स्वरुप विकृत होता गया और कालांतर में पौराणिक धर्म का प्रचलन हो गया, जिसने हिन्दू समाज को न केवल निकम्मा, काहिल और अज्ञानी बना दिया वरण पूर्णतः पथभ्रष्ट भी कर दिया.अब उसका धर्म कतिपय त्यौहारों,दान-दक्षिणा, श्राद्धादि भर रह गया है.पंडित,पुजारी,तथाकथित गुरु आम हिन्दू तथा सनातन वैदिक धर्म के बीच दीवार बन कर खड़े हैं ताकि हिन्दू समाज का वैदिक धर्म के साथ साक्षात्कार न हो जाये!उन्हें भय है की जिस दिन हिन्दू सत्य को जान गया, उनकी दुकानदारी जाती रहेगी.कभी वैदिक धर्म का अनुयायी आज बिल्कुल असहायावस्था में है तथा विधर्मी मतों के सतत आक्रमण को झेलने की स्थिति में नहीं है.हिन्दू समाज की यह अवस्था हिन्दू राष्ट्र के लिए घोर चिंता का विषय है.

पश्चिम एशिया में उदित इस्लाम और ईसाई मत पैगम्बरवाद की धुरी पर टिके हैं.इसाई मत के अनुसार इश्वर का एक ही पुत्र है-इसा मसीह.जो उसकी शरण में गया वो तर गया.जिसने उसे अपना मुक्तिदाता मानने से इनकार किया वह नरकाग्नि में जलने के लिए अभिशप्त हो गया. स्वर्ग का वीजा देने का एकमात्र ठेका उसी के पास है.

ईसा  के ६०० वर्षों के बाद इस्लाम का उदय हुआ.इस्लाम का मुख्य सूत्र है- "अल्लाह के सिवा और कोई इश्वर नहीं है तथा मोहम्मद ही उसका एकमात्र(और आखिरी) पैगम्बर है".कुरआन के अनुसार दीन (धर्म) केवल इस्लाम है और उसपर ईमान(विश्वास) लाने वाला मोमिन तथा इनकार करने वाला काफिर है.अल्लाह पर ईमान लाने वालों पर ही अल्लाह रहमतों की वर्षा करता है.अन्य मतावलंबियों के लिए उसके पास बड़ा भारी अजाब(सजा) है.मुसलमानों के अनुसार कुरआन एक 'आसमानी' किताब है जिसमे निहित सन्देश सम्पूर्ण मानवता के लिए हैं.धरती पर अल्लाह का साम्राज्य स्थापित करने के लिए (अर्थात सम्पूर्ण मानवता को मुसलमान बनाने के लिए ) जिहाद् करना हर मुसलमान का ईश्वरीय कर्तव्य है.

स्पष्टतः  इन दोनों मतों की प्रकृति में अद्भुत समानता है. इनका उद्देश्य है-सम्पूर्ण विश्व में इस्लाम या  इसाइयत का साम्राज्य स्थापित करना. इनके रास्ते भले ही अलग-अलग हों उद्देश्य एक ही है.जहाँ इसाईं  मत "सेवा मार्ग" से इस धरती पर अपना साम्राज्य स्थापित करने में विश्वास रखता है, इस्लाम आतंकवाद के माध्यम से विश्व में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए संघर्षरत है.

एक ओर जहां इसाई और इस्लामी संगठन इस देश पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए हर संभव-असंभव प्रयास करने से बाज नहीं आ रहे, वहीं दूसरी  ओर हिन्दू मानस किसी भी ऐसे आसन्न खतरे का आभास तक करने की स्थिति में नहीं है.वास्तविक संघर्ष तो इसाई और इस्लाम के बीच है.हिन्दू तो इस संघर्ष में कहीं भी नहीं है.उसे इसका जरा भी ज्ञान नहीं कि उसका क्या हश्र होने वाला है.उसे इसका तनिक भी आभास नहीं की उसकी भारत माता का चीरहरण होने वाला है!आम हिन्दू, हिन्दू समाज तथा अपनी मातृभूमि के भविष्य के प्रति पूर्णतः उदासीन है."सर्वधर्म समभाव","अनेकता में एकता","वसुधैव कुटुम्बकम" तथा "धर्मनिरपेक्षता" के खोखले सिद्धांतों को सीने से लगाये बेसुध पड़ा है.अपने "अल्पसंख्यक भाइयों" के प्यार में वह पागल है, बिना इसकी परवाह किये कि उसके ये "भाई" उसे अपना भाई तक नहीं मानते!वह तो यह भी नहीं समझ पा रहा की यहूदी संस्कृति पर आधारित ये मत भारत-भूमि को अपनी मातृभूमि तक नहीं मानते, उसे महज जमीन का एक टुकड़ा मानते हैं जिस पर येन-केन-प्रकारेण कब्जा करना उनका मजहबी कर्तव्य है!

काश, हिन्दू भी सांप्रदायिक होते!उनकी सबसे बड़ी त्रासदी भी यही रही है की वे कभी भी साम्प्रदायिक नहीं   बन पाए.यही कारण है कि उनका भारतवर्ष एक के बाद एक  विधर्मियों के हाथ का खिलौना बनता रहा, पद-दलित होता रहा.

वेदों में इडा,सरस्वती तथा मही के रूप में मातृभूमि,मातृभाषा तथा मात्रिसंस्कृति को तीन कल्याणकारी देवियों का स्थान प्रदान किया गया है-" इडा सरस्वती मही देवीर्मयोभुवः" .

या भूमि हमारी थी, हमारी है और सर्वदा हमारी रहेगी.हिन्दू राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हर पल हमारी सावधानी अपेक्षित है. मानसिक दुर्बलता अनेकानेक विपत्तियों को आमंत्रण देती है.अतः वेद का यह मन्त्र याद रखना होगा:
        उदारीणा उतासीनाः तिष्ठ्न्तः प्रकामन्तः
        पद्भ्याम दक्षिन्सव्याभ्याम मा व्यथिष्म्ही भूम्याम (अथर्ववेद १२/1/२८)

अर्थात हमारी मातृभूमि किसी भी स्थिति में हमसे तिरस्कृत न हो और न ही व्यथित हो.

मातृभूमि को डायन कहने वाले पतित प्राणी इस मन्त्र में अन्तर्निहित मर्म को क्या जाने!

अतः यदि आर्य (हिन्दु) राष्ट्र का अस्तित्व बचाए रखना है तो इस आर्य-भूमि पर आर्यापुत्रों का जन्मसिद्ध अधिकार बनाये रखना होगा.इस हेतु उन्हें उग्र साम्प्रदायिकता अपनानी होगी. अन्यथा वैदिक आर्य (हिन्दू) राष्ट्र का कोई भविष्य नहीं

बहुसंख्यक सम्प्रदायकवाद में ही वास्तविक राष्ट्रवाद का दर्शन किया जा सकता है, मूर्खतापूर्ण धर्मनिरपेक्षता में नहीं.

हमें अपने अन्दर स्फूर्त भावनाओं का संचार करना होगा ताकि हम निम्न वैदिक मंत्रनुसार यह कह सकें:

                                       अहमस्मि सहमान उत्तरों भूम्याम
      अर्थात मातृभूमि की रक्षा के लिए विरोधी शक्तियों का पराभव करने वाला मैं स्वयं हूँ.मैं प्रशासनीय यश् वाला हूँ तथा हर दिशा से आने वाली विपत्तियों को निःशेष करने की क्षमता रखता हूँ.


                                                      इति


Saturday, 4 May 2013

A Nobel Prize For Scams.....

Long back in 1947, soon after Jawaharlal Nehru delivered his "Tryst with Destiny" speech, surfaced  the famous jeep scandal involving V K Krishna Menon, then our High Commissioner to Britain. The case in brief was that he had ordered on a dubious company for 4603 jeeps in the wake of Pak aggression in Kashmir.The infamous jeeps of very low quality were delivered four years later in 1951.Krishna Menon, alleged to be a commie was a  brilliant orator and confidante of Nehru. He  later on went to become  India's Defence Minister only to resign in the wake of Chinese aggression when it was revealed that the ordinace factories were making shoes in place of guns!

A few years later in 1957 came the Mundhra scandal involving Haridas Mundhra, a Kanpur businessman from whom the LIC bought bogus shares worth  one crore plus.)n December 16, 1957 the parliament debated the issue and the matter was investigated by the celebrated Chief Justice of Bombay High Court and later India's Foreign Minister M C Chagla who in his report described Mundhra "not an industrialist at all" but "an adventurer" whose "passion" it was to "swallow as many firms as possible" by dubious means. It was found the then Finance Minister T T Krishnamachari was in i know of the Mundhra deals.The scandal took its toll.TTK resigned and passed into oblivion.

Sardar Pratap Singh Kairon, Punjab's Chief Minister had to resign in 1964 on charge of helping his relatives amass huge wealth.

An interesting case involving one Nagarwala, an ex-Army officer,came to light in 1971 He was charged of withdrawing  Rs 60L from SBI allegedly "faking" Indira Gandhi's voice.He died under mysterious circumstance in jail and the matter just rested there.

A few years later in 1974 came the Tulmohan Ram scandal. The MP from Araraia parliamentary constituency forged a letter signed by 21 members of parliament   recommending some Pondicherry merchants import licenses from the Ministry of Trade.L N Mishra, close to Indira Gandhi, the then Prime Minister was Minister of Trade then. Mishra later on become a powerful minister of her cabinet and died under dubious circumstances in Samastipur Bomb Blast in 1977.

In 1982 took place the Churhat Lottery scandal involving Arjun Singh, the then Chief Minister of Madhya Pradesh.The amount involved was 5.4 Cr of the Churhat Children's Welfare Society.

Then came the HDW, Bofors (1987)involving Rajiv Gandhi,, Securities scam of 1992, Sugar scam of 1994,JMM bribery case in 1995,Urea scam in 1996,Telecom scandal in 1996,Howitzer in 1998, Indian Bank scam in which another Congress minister was alleged to have been involved, Adarsh scam and so on and so forth.


Much water has flown down the Yamuna since then. In the recent years we have had the 2G,Commonwealth games' scam involving  a Congress member of parliament, helicopter deal involving an ex-air chief, Coalgate involving the Prime Minister himself and now Railgate.The difference from previous  scams is that the amount involved has shown steep rise.A few crores is a m peanut now. It is in millions.The other difference is that unlike the olden days, resignations are hard to come by Manmohan Singh Government has indeed broken all previous records of scams and has consistently followed the politics of shamelessness which indeed deserves a Nobel Prize for him!


Saturday, 13 April 2013

Secularism as a political ideology.

The word secularism was coined in Europe to mean distancing the state from the state. Because of undue interference by the Church in matters of state, making it impossible for the state to discharge its duties and responsibilities in a fair manner, it was decided that the state maintain a distance from religion and henceforth be "Secular".A good many states in modern Europe and America have been able to maintain their secular character, barring a few Catholic states which to some extent, still relish Church's interference in the affairs of the state.

However, with the resurgence of Islam the concept of secularism was given a go by  by the followers of the religion.For, the Allah through his prophet enunciated an ideology which covered almost every walk of life-religious as well as social political, legal, economic, academic and what not.Since Allah declared the prophet as his last messenger and Islam as the final "revelation" for the  entire humanity,  it became incumbent on  Islamic states and followers of Islam to follow the Quranic message and the Hadith(teachings of the Prophet) as the state's constitution.Only a handful of Islamic states do have western type of constitution. the rest just follow the constitution given to them by the Allah and his messenger.Indeed King Saud of Saudi Arabia had exclaimed-"What constitution! Allah has already given us one!".Thus the countries with Muslims as majority have theocratic state with Islam as their constitution.And this was the reason for India's partition. For, the millions of Islamists thought they couldn't co-exist with the kafirs who outnumbered them in this ancient land which would always remain Hindu in character despite Gandhian secularism(meaning perpetual Hindu tolerance and perseverance despite being targeted by others!).

In the Indian context, while the Hindu states within the area known as Indian subcontinent had a "Rajpurohit" the religious interference was virtually nil in so far as the matters of the state were concerned.  The "Rajpurohit" was concerned mainly with carrying out the religious rituals and tender advice only when asked.The seers just advised the state to be run on the lines of universal truth principles which in other words were known as Sanatan principles.Hinduism not being a religion like any other, therefore, has had its hands fairly clean as far as 'secularism' was/ is  concerned ! Barring Nepal( which is now a scular one) there was not even a single Hindu state on this earth. The same can be said to be true of Sikkhism and Buddhism, howsoever limited their sphere of influence might have been.

We in India, however, have given a very different meaning to the word 'Secularism". We have, in fact almost reversed the meaning of the word.We have turned it into a political principle.It is now perhaps the most abused word in India now.Far from distancing politics and state from religion, our state and the powers that be who run the state crawl before the so called religious leaders of one community or the other to suit their vested interests.Indeed India is the only state which allows practice and propagation of religion as a fundamental right! Nehruvian secularism  as enunciated by Nehru soon after independence had the seeds of the political secularism (or "Sickularism" as most people think!) which is rampant in India now.

The political animals  in India have created a situation in which  secularism is preached and practiced as a political ideology suited to garner votes of different religious communities.The worst victims of this political secularism has been the majority community. They are abused as the most "communal" (meaning one who inflame hatred against the so called 'minorities"(I wonder how could one term a community with a population of 20 or 25 lakhs as "minority"!)The minorities are paradoxically the "Holy cows" of secularism in contrast to the community which treats the cow as their second mother!Every community except the majority community is regarded as secular.The majority are the real enemies of the so called secular state of India and secular harmony.It is always expected of them that they give up defending their religion  against religions which aim at finishing them up!The logical corollary is that they should give up  their religion altogether to appease their "minority" brethren in the interest of what is called "communal harmony"! Nobody can say whether these so called minority communities have ever been criticized for violating the principles of SECULARISM!

Hindus have the history of betrayals for centuries. They are one community who have refused to take lessons from the past. And indeed, those who ignore history are destined to be thrown into the dustbin of history!





Wednesday, 10 April 2013

Honey,Money and dynasty

Recently the scion of "The Family" compared India to "Beehive".Nothing extraordinary about that.Right from the days of Nehru this dynasty has been so fond of extracting Honey from the "Beehive" and Money from the exchequer that they can not but treat India-our and Modi's mother as nothing else but some sort of a beehive.There has been always a Queen Bee and the bees around.Whenever you throw a stone at the beehive, the bees just sting you all over and the scions of the family come prepared to extract honey from the hive.And they have been thriving on the honey for decades.Congenital parasites these.

The so called Indian national Congress has made a full circle from A O Hume to Anatonio Maino alias Sonia Gandhi.The party was hijacked by Nehru soon after independence despite the cry of the Father of the Nation to turn the Congress into  Lok Sewak Sangh rather than a political party. But Nehru knew without a political party he would not be able to fulfill  his political ambitions. So he ignored Gandhi's advice and threw this party into the election arena to capture power.The man ruled India for full 18 years, enjoying all the honey from the hive.Barring a brief period when Shastri became India's prime minister and and a few more interruptions,, the family has been ruling India as their fiefdom enjoying all the honey and money to which the common man should have had the exclusive rights!

Now when a stage has come when there is the emergence of a mass leader - Narendra Modi- on the political horizon-the family and its private limited company have become immensely restless. They see in Modi a threat to their very existence  and exclusive right over country's honey and money.Things are turning really dismal for them.Let us see what the morrow has in store for them-Whether they continue to enjoy the honey and money or they get deprived of it for ever.